News Agency : केरल में सबरीमाला आंदोलन के दौरान बीजेपी ने काफी मेहनत की, लेकिन जीत कांग्रेस के हाथ लगी। आप इस लाइन में केरल के नतीजों को बखान कर सकते हैं। कांग्रेस ने घटक दलों के साथ राज्य की 20 में से 19 सीटों पर जीत हासिल की। सबरीमाला मुद्दे को लेकर बहुसंख्यकों में काफी गुस्सा था और इसके साथ ही अल्पसंख्यक भी इस पर एकजुट हो गए। इसी वजह से कांग्रेस को दक्षिण भारत के इस राज्य में बड़ी जीत मिली। जिस तरह से केरल में सबरीमाला मुद्दे को लेकर हिंदू लामबंदी हुई, वह केरल के लिए नई बात थी। हालांकि इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसा नहीं था कि पार्टी की ओर से इस बारे में प्रयास नहीं किए गए। पिछले साल अक्टूबर से पिनरई विजयन की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को लागू करने का प्रयास किया जिसमें ten से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने की इजाजत दी गई थी। यह मुद्दा संघ परिवार के लिए किसी वरदान से कम नहीं था। और बीजेपी के लिए आखिरकार राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का एक सुनहार मौका था। इस राज्य में पार्टी एक संगठन के रूप में कई दशकों से काफी मजबूत है, लेकिन बात जब चुनावों की आती है तो वह हाशिये पर रहती है। इसके पीछे की एक बड़ी वजह बीजेपी से सहानुभूति रखने वाले वोटर्स का क्रॉस वोटिंग करना भी एक अहम कारण माना जा रहा है। इन वोटर्स ने संभवत: ऐसा सोचा कि अगर विजयन सरकार को सबक सिखाना है तो इसके लिए कांग्रेस एक बेहतर विकल्प हो सकता है। यह विचार काम कर गया कि जब लड़ाई एलडीएफ और यूडीएफ के बीच है तो अपना वोट बीजेपी को देकर खराब क्यों जाए। इसके साथ ही बीजेपी के साथ कुछ भार भी था जो केरल में उसके पक्ष में नहीं गया।
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